
नपाध्यक्षों को बचाने के लिए नगरपालिका एक्ट में संशोधन कर अविश्वास से अध्यक्ष का नाम गुम
मधुसूदनगढ़ के अध्यक्ष का अविश्वास सम्मेलन किया निरस्त, शिवपुरी नपाध्यक्ष भी सुकून में
शिवपुरी। अप्रत्यक्ष प्रणाली से चुनकर आए नगरपालिका व निगम में ऐसे लोग अध्यक्ष बन गए कि उनका विरोध होना शुरू हो गया। केवल शिवपुरी ही नहीं, बल्कि प्रदेश की 80 फीसदी नगरीय निकाय में अध्यक्ष को हटाने के लिए पार्षद और कुछ जगह जनता भी लामबंद हो गई। जब शिकायतें नगरीय विकास एवं आवास विभाग मंत्रालय तक पहुंचीं। सरकार ने निकायों में गहराए विरोध को खत्म करने के लिए नगरपालिका एक्ट में स्विप ऐसा संशोधन किया कि अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया ही नहीं जा सकता। ऐसा एक पत्र मंत्रालय ने कलेक्टर गुना को पिछले महीने भेजा था।
ज्ञात रहे कि पिछले दिनों खबरें छपी थीं कि मधुसूदनगढ़ और शिवपुरी नपाध्यक्ष को हटाने की कार्यवाही कभी भी हो सकती है। जो पत्र कलेक्टर गुना को नगरीय प्रशासन आवास मंत्रालय से भेजा गया, उसमें उल्लेख किया है कि मधुसूदनगढ़ नगर परिषद अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के पालन में सम्मेलन की परमीशन एसडीएम राधौगढ़ ने मांगी थी। जिसके जवाब में मंत्रालय के उप सचिव आरके कार्तिकेय ने जो पत्र भेजा है, उसमें स्पष्ट लिख दिया एक्ट की धारा 43-क में संशोधन करके उसमें से अध्यक्ष का नाम लोप कर दिया है। इसलिए अब कहीं भी अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकेगा।
शिवपुरी में तो वापस ही ले लिया था आवेदन
नगरपालिका अध्यक्ष शिवपुरी को हटाने के लिए कलेक्टर को पार्षदों ने अविश्वास प्रस्ताव का आवेदन दिया था। जिसे वापस करवाने के लिए भाजपा जिलाध्यक्ष से लेकर प्रभारी मंत्री एवं प्रशासन ने पूरा प्रयास किया। आवेदन वापस लेते समय पार्षदों में गुटबाजी हो गई, और अब तो सरकार ने ही संशोधन करके अविश्वास के प्रकोप से अध्यक्ष को सुरक्षित कर दिया।
माल की लड़ाई से बिगड़े निकायों में हालात
नगर निगम, नगरपालिका व नगर परिषद में अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होने की वजह से अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचने में काफी अधिक पैसा खर्च हुआ। हालांकि शिवपुरी में बिना कोई खर्चे के नपाध्यक्ष का ताज गायत्री शर्मा को, पूर्व केबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया पहना गईं थीं। अध्यक्ष बनते ही फिर शुरू हुआ रिकवरी की कवायद, जिसमें शिवपुरी नपाध्यक्ष भी पीछे नहीं रहीं। प्रशासनिक जांच में तो उनके भ्रष्टाचार प्रमाणित भी हो गए। अध्यक्षों ने अपनी जेब भरी, वार्डों में काम ना होने से पार्षद भी परेशान हो गए, और प्रदेश के कई जिलों में हालात बिगड़ गए। जिन्हें सुधारने के लिए एक्ट में ही संशोधन कर दिया।

नगरपालिका एक्ट में किया संशोधन, जिसमें अध्यक्ष का नाम अविश्वास से हटाया






