
वन विभाग में कटने वाली पीओआर में बदल रहे आदिवासियों की जगह नेताओं के नाम
शिवपुरी। इन दिनों वन विभाग में पीओआर काटने में नाम बदलने की प्रक्रिया चल रही है। इस खेल में जंगल की जमीन पर बरसों से अतिक्रमण करके रहने वाले आदिवासियों की जगह सत्ताधारी नेताओं या उनके नजदीकियों के नाम डाले जा रहे हैं। पीओआर में अभी नाम बदलने के बाद इन नेताओं को कब्जाधारी मानकर उनके नाम जमीन कर दी जाएगी। शिवपुरी माधव टाइगर रिजर्व एवं श्योपुर के कूनो अभ्यारण्य के आसपास यह खेल खेला जा रहा है।
गौरतलब है कि श्योपुर में चीता और शिवपुरी में टाइगर आने के बाद देशी सहित विदेशी सैलानियों की संख्या बढ़ना तय है। ऐसे में शिवपुरी और श्योपुर में जंगल के पास वाली वन भूमि पर सैलानियों के लिए रिसॉर्ट, होम स्टे, फार्म स्टे आदि संचालित किए जाएंगे। जिसके लिए अभी से जमीन हथियाने की तैयारी शुरू कर दी है। चूंकि वन विभाग का यह नियम होता है कि जंगल की जमीन पर जो अतिक्रमणकारी होता है, उसके नाम से वन विभाग समय-समय पर पीओआर काटकर उनके।नाम से जुर्माना भरा जाता है। वन विभाग द्वारा दी जाने वाली पीओआर की रसीद इस बात का प्रमाण होती है कि जंगल की उक्त जमीन पर रसीदधारी कब्जा किए हुए था। अब वन विभाग अपने रिकॉर्ड में कब्जेधारी की जगह आदिवासी का नाम बदलकर उसकी जगह सत्ताधारी नेता। अथवा उनके नजदीकी का नाम अंकित करके रसीद काटी जा रही है।
इन नामों में भाजपा के कई कद्दावर नेताओं के अलावा शहर में रहने वाले उनके सेवक की भूमिका में रहने वाले छुटभैया नेता फॉरेस्ट की जमीन के कब्जेधारी बन बैठे हैं। अब भविष्य में जब फॉरेस्ट की जमीन को इन नेताओं के नाम से अपने रिकॉर्ड में दर्ज कर लेंगे, तो फिर उसमें पर्यटकों के लिए खाने- पीने एवं रुकने की व्यवस्था करके मोटा माल कमाएंगे।
इन क्षेत्रों में बदल रहे नाम
शिवपुरी के पोहरी, सतनबाड़ा, करही, नरवर के अलावा श्योपुर और कराहल क्षेत्र में इन दिनों पीओआर में कब्जेधारी का नाम बदलने की प्रक्रिया चल रही है। चूंकि अधिकांश सैलानी जंगल में ही टाइगर और चीतों के बीच रुकना पसंद करते हैं, इसलिए भविष्य में कमाई के उद्देश्य से यह बदलाव तेजी से किया जा रहा है।
पांच साल का रिकॉर्ड खंगालना जरूरी
जबसे श्योपुर और शिवपुरी में टाइगर और चीता लाए जाने की सुगबुगाहट शुरू हुई थी, तभी से पीओआर में नाम बदलने का खेल शुरू हो गया था। यदि पिछले पांच साल का रिकॉर्ड खंगाला जाकर यह पता किया जाए कि किस नाम से कितनी पीओआर काटी गई, तथा कितनी फॉरेस्ट की जमीन को राजस्व में कन्वर्ड किया गया?। यह जांच होते ही पूरा खेल ओपन हो जाएगा।









