September 30, 2025

टाइगर की दहाड़ से गूंजेंगे गांव, अभी कार्यों पर लगेगी रोक, खेतों में नहीं कर सकेंगे फेंसिंग
शिवपुरी। शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क को टाइगर रिजर्व का दर्जा दे दिया गया, जबकि पार्क के अंदर मौजूद गांव ही खाली नहीं हुए। बफर जोन में शामिल हुए गांव में रहने वाले लोगों की चिंता भी बढ़ गई, क्योंकि अब उनके गांव में किसी भी काम के।लिए परमीशन नहीं मिलेगी, तथा अब किसान खेतों में तार फेंसिंग भी नहीं कर पाएंगे।
गौरतलब है कि बीते 10 मार्च को माधव नेशनल पार्क को प्रदेश का 9वा टाइगर रिजर्व प्रदेश के मुख्यमंत्री घोषित कर गए, जबकि पार्क के अंदर मौजूद लखनगंवा जैसे अन्य गांव अभी तक खाली नहीं हुए। आज भी उक्त गांव में रहने वाले ग्रामीण पार्क के अंदर अपने गांव की जमीन पर खेती कर रहे हैं। मुआवजा मामला अटकने की वजह से यह गांव खाली नहीं हुए हैं, और अब जो टाइगर छोड़े जा रहे हैं, वो उसी साइड में छोड़े जा रहे हैं। चूंकि उक्त सभी गांव नेशनल पार्क के अंदर है, इसलिए उस एरिया में सुरक्षा बाउंड्री भी बनाई गई, ऐसे में इन गांव में रहने वाले ग्रामीणों के सिर पर टाइगरों की आमद किसी काली छाया से कम नहीं है।
करैरा-सातनबाड़ा साइड में बढ़ाया एरिया
मध्य नेशनल पार्क में 375 वर्ग किमी का कोर एरिया है, जबकि 1275 वर्ग किमी सामान्य वन मंडल की भूमि को शामिल कर बफर जोन बनाया गया है। इस तरह टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 1650 वर्ग किमी हो गया है। पार्क के पश्चिल में शिवपुरी शहर की बसाहट है, इसलिए बफर जोन एरिया करेरा – सतनवाडा की तरफ बढ़ाया गया है। पूर्व की ओर अमोला तक और इधर कांकर तक के जंगल को शामिल किया है। बफर जोन में टाइगर से सुरक्षा के लिए कोई दीवार नहीं बनाई है, यानि इन दिशाओं से टाइगर आसपास के गांव में घूम सकता है।
लेनी होगी वाइल्ड लाइफ की परमीशन
जिन 13 ग्राम पंचायतों एवं उनमें आने वाले लगभग 65 गांव के बफर जोन में शामिल होने के बाद अब वहां टाइगर रिजर्व के नियम लागू हो गए हैं। अब इन गांव में सड़क बनाने से लेकर पानी की पाइप लाइन डालने से पहले वाइल्ड लाइफ दिल्ली से परमीशन लेनी पड़ेगी। यह परमीशन कितनी आसानी से मिलती है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शिवपुरी शहर की सिंध जलावर्धन योजना के लिए 3 साल इंतजार करना पड़ा था। बफर जोन के गांव में रहने वाले किसान अपने खेतों में तार फेंसिंग नहीं कर सकेंगे, क्योंकि टाइगर के फेंसिंग में फंसने का खतरा रहेगा।
हमले का इंतजार, फिर डरकर भागेंगे
नेशनल पार्क के अंदर मौजूद गांव को खाली कराने के लिए प्रशासन ने पहले कवायद की थी, जिसके चलते 2 साल तक उक्त गांव में रहने वाले किसान खेती नहीं कर पाए थे। बीते वर्ष पार्क प्रबंधन और प्रशासन ने कोई कसावट नहीं की, तो किसानों ने फिर खेती कर ली। ग्रामीणों के बीच चर्चा यह भी है कि शायद पार्क प्रबंधन चाहता है कि टाइगर किसी ग्रामीण पर हमला कर दे, जिसका मुआवजा तो नेशनल पार्क दे देगा, लेकिन उस हमले से डर के दूसरे ग्रामीण पार्क एरिया छोड़कर भाग जाएंगे।

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