सिंधिया के आगे भाजपा संगठन की बंद मुठ्ठी भी खुली, जो निकली खाली
शिवपुरी भाजपा जिलाध्यक्ष के नाम पर आखिरकार मुहर लग ही गई। भाजपा संगठन के नेताओं की एक नहीं चली और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सिंगल नाम देकर जसमंत जाटव को जिलाध्यक्ष बनवा दिया। यानि सिंधिया गुट, भाजपा गुट पर हावी रहा। इस निर्णय ने भाजपा के वरिष्ठ नेताओं तथा बरसों से पार्टी।का झंडा लेकर चलने वाले कार्यकर्ताओं को निराश कर दिया। इस पूरे खेल।में भाजपा संगठन को ताकतवर बताने वालों की बंद मुठ्ठी भी खुल गई। यानि पार्टी निष्ठा और उसके।प्रति समर्पण के कोई मायने नहीं हैं, आज भी चरणवंदना ही सर्वोपरि।
बरसों से अपना भविष्य तलाश रहे युवा भाजपा नेताओं के नाम शिवपुरी जिलाध्यक्ष के लिए संगठन के नेताओं के पास गए, लेकिन सांसद सिंधिया ने एक नाम दिया, तो सभी नाम बेकाम हो गए। भाजपा का संगठन भी सिंधिया के आगे नतमस्तक हो गया और सभी नामों को साइड करके एक ऐसे नए नवेले भाजपा नेता को जिलाध्यक्ष बना दिया, जो पहली बार कांग्रेस के टिकिट पर करेरा विधायक बना, और सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आया। फिर उपचुनाव में नए नवेले कांग्रेस नेता प्रागीलाल जाटव से शिकस्त पाने के बाद भी सिंधिया के आशीर्वाद से कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी ले।लिया। हारने के बाद भी कैबिनेट मंत्री का ग्लैमर भोगने के बाद एक बार फिर सभी भाजपा नेताओं और कार्यकर्ताओं को साइड करके जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर काबिज हो गए।
आखिर सिंधिया एक ही नेता पर इतने मेहरबान क्यों हैं?, यह सवाल भी भाजपा नेताओं को परेशान किए हुए है। क्योंकि जिस नेता को उसकी विधानसभा क्षेत्र की जनता ने एक ही साल के कार्यकाल में नकार दिया हो, उसमें सांसद को क्या खूबी नजर आ गई..??
विधायक की चिंता बढ़ी
जिलाध्यक्ष की कुर्सी पर जसमंत जाटव के नाम की घोषणा से पुराने भाजपा नेता तो परेशान हैं हीं, लेकिन करेरा विधायक की चिंता बढ़ गई। सूत्रों का कहना है कि विधानसभा चुनाव में नवागत जिलाध्यक्ष ने रमेश खटीक के।खिलाफ काम किया था। वहीं करेरा में सबसे बड़ी आमदनी वाले रेत कारोबार में भी अब विधायक की पकड़ कमजोर।हो जाएगी, क्योंकि जिलाध्यक्ष का पुराना अनुभव है, और उनके कार्यकाल में रेत के कई मामलों में।उनका नाम खुलकर सामने आया था। तभी से उन्हें रेतीला विधायक भी कहा जाने लगा था।








