
क्या हुआ नगरपालिका का मुद्दा: अध्यक्ष रहेंगी या जाएंगी..?, थक गए पार्षद, एसपी नहीं देख पाए एक्ट की धारा
बदहाल शहर में ब्रांडिंग कर रहे शिवपुरी विधायक, जनता मूक दर्शक बनकर देख रही नेताओं के बदलते रंग
शिवपुरी। नगरपालिका शिवपुरी में चला नपाध्यक्ष हटाओ-शहर बचाओ, अभियान का क्या हुआ?, यह सवाल शहर की जनता पूछ रही है। नपाध्यक्ष का नाम एफआईआर में शामिल किए जाने की मांग किए हुए पार्षदों को एक पखवाड़ा गुजर गया, लेकिन अभी तक पुलिस अधीक्षक नगरपालिका एक्ट में प्रावधान नहीं ढूंढ पाए। बदहाल हो चुके शहर में शिवपुरी विधायक अपनी ब्रांडिंग के बोर्ड लगा रहे हैं। इस पूरे खेल को जनता मूक दर्शक बनकर देख रही है, कि गिरगिट तो यूं ही बदनाम है, नेताओं से अधिक रंग तो कोई नहीं बदलता।
शहर को साफ-सुथरा और मूलभूत सुविधाओं से सुसज्जित रखने का दायित्व नगरपालिका का है। शहर की लगभग पौने 3 लाख की आबादी को सड़क, बिजली (स्ट्रीट लाइट), पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं बेहतर देने के लिए वार्डों में जनता अपना पार्षद चुनती है, और पिछले चुनाव तक वार्डों के पार्षद अपना अध्यक्ष चुना करते थे। शिवपुरी में स्टोरी कुछ ऐसी उलझी कि करोड़ों खर्च करके अध्यक्ष का ताज पहनने की तैयारी करने वाले हाथ मलते रह गए, और बिना किसी खर्चे के गायत्री शर्मा नपाध्यक्ष बन गई। शिवपुरी शहर को यह गिफ्ट पूर्व केबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया ने दी, और वो भी पार्षदों की गर्दन पर तलवार रखकर। यह हम नहीं कह रहे, बल्कि भाजपा के वरिष्ठ नेता व पार्षद ओमी जैन ने मीडिया के समक्ष स्वीकार किया।
किस्मत का सितारा बुलंद था, तो गायत्री शर्मा को शहर की प्रथम नागरिक बनने का गौरव मिला। शुरुआत तो ठीक थी, लेकिन फिर बीच में जीजाजी ने आकर कुछ ऐसा रोल दिखाया कि पूरा खेल ही बिगड़ गया। बेटे पर दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ, और खुद भ्रष्टाचार में उलझ गई।
नपा में हुए करोड़ों के भ्रष्टाचार की जब प्रशासन ने जांच कराई तो हर घोटाले।में नपाध्यक्ष की संलिप्तता ना केवल स्पष्ट हुई है, बल्कि भ्रष्टाचार अधिनियम के आरोप में जेल में बंद ठेकेदार अर्पित शर्मा की जमानत अर्जी निरस्त करने वाले जिला न्यायालय की मजिस्ट्रेट एवं हाईकोर्ट जज ने यह उल्लेख किया कि बिना काम के ठेकेदार को जो भुगतान हुआ, उसमें नपाध्यक्ष की संलिप्तता है। जिसके आधार पर ही पार्षदों ने भ्रष्टाचार के दर्ज मामले में नपाध्यक्ष का नाम बढ़ाए जाने का ज्ञापन एसपी को सौंपा था।
ऐसे समझें नेताओं का बदला रंग:
– नपाध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का आवेदन देने के बाद विरोधी पार्षदों को मनाने का दौर चला, तो ओमी जैन के घर से लेकर कलेक्ट्रेट, सर्किट हाउस में आधा दर्जन बैठकें भाजपा जिलाध्यक्ष जसमंत जाटव ने लीं, तथा पार्षदों को कार्रवाई के आश्वासन की पुड़िया देकर मनाते रहे। जब अविश्वास आवेदन वापस हुआ, तो जसमंत जाटव कहने लगे कि इस्तीफा देना पार्षदों की संवैधानिक स्वतंत्रता है।
– प्रभारी मंत्री प्रद्युम्न सिंह तोमर ने पहले पार्षदों को पूरा भरोसा दिलाया कि आवेदन वापस ले लो, नपाध्यक्ष के खिलाफ कार्यवाही होगी। लेकिन अब उनसे बात करो, तो वो कहते हैं, कि अब केवल विकास की बात होगी।
– केंद्रीय मंत्री एवं क्षेत्रीय सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया: जिनके हाथ में सभी नेता और अभिनेता (अधिकारी) हैं, वो ना तो कुछ बोल रहे, और ना ही कुछ कर रहे, जिसके चलते जमीनी स्तर पर लोग विरोध में बाते करने लगे हैं।
– विधायक देवेंद्र जैन ने चुनाव में शपथ पत्र जनता को बांटा था, जिसमें उन्होंने शहर को स्वर्ग बनाने का दावा किया था। अब विधायक नगर पालिका को नरक पालिका कहकर अपना पल्ला झाड़ रहे हैं, तथा कचरे के ढेर में अपने ब्रांडिंग बोर्ड लगवा रहे हैं। शपथ पत्र पर गारंटर बने बल्लू भैया भी गायब हैं।







