नकली एसडीएम बनकर संभागायुक्त के फर्जी दस्तावेज से जमीन बेचने वाले प्रबल की जमानत हुई निरस्त
विक्रय से वर्जित भूमि को विक्रय करने का ग्वालियर संभागायुक्त का आदेश ले आया था नटवरलाल प्रबल
शिवपुरी। जिले में चर्चित रहे जमीन घोटाले में नकली एसडीएम बने प्रबल शर्मा पुत्र राकेश शर्मा का जमानत आवेदन प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश विवेक शर्मा ने निरस्त कर दिया। ज्ञात रहे कि प्रबल शर्मा ने ग्वालियर संभागायुक्त का एक फर्जी दस्तावेज बनवाकर लाखों की जमीन शहर के ही एक वकील पुत्र को बिकवा दी थी। महत्वपूर्ण बात यह है कि नटवरलाल प्रबल के पिता भी शिवपुरी में वकील हैं।
ऐसे समझें पूरा मामला:
शिवपुरी उप पंजीयक ने 10 अक्टूबर 2025 को नीमच निवासी प्रेमशंकर तांबेड (अजजा) की शिवपुरी मेडिकल कॉलेज के पीछे स्थित 1.4111 हेक्टेयर जमीन शिवपुरी निवासी जितेंद्र गोयल को बेचने का विक्रय पत्र संपादित कराया। रजिस्ट्री होने के दौरान उप पंजीयक शिवपुरी को ग्वालियर संभागायुक्त का एक आदेश क्रमांक 0104/अ -21/2024-25 दिनांक 8/1/2025 की प्रति भी लगाई। आयुक्त का यह आदेश विक्रय से वर्जित भूमि को क्रय किए जाने का था।
तहसीलदार ने पकड़ा मामला:
रजिस्ट्री के बाद जब फाइल शिवपुरी तहसीलदार सिद्धार्थ शर्मा के पास गई, तो उन्हें शंका हुई। इस पर तहसीलदार ने 3/11/2025 को जब संभागायुक्त ग्वालियर सहित अपलोड होने वाली जानकारी खंगाली, तो पता चला कि आयुक्त के यहां से इस तरह का कोई आदेश जारी ही नहीं किया गया। यानि विक्रय से वर्जित भूमि को बेचने के लिए संभागायुक्त का फर्जी दस्तावेज लगाया गया था।
विक्रेता ने लिया प्रबल का नाम:
शिवपुरी कोतवाली पुलिस ने जब जमीन विक्रेता प्रेमशंकर तांबेड के खिलाफ मामला दर्ज कर उसे 25 नवंबर 2025 को गिरफ्तार किया, तो पूछताछ में उसने बताया कि आयुक्त का दस्तावेज प्रबल शर्मा बनवाकर लाया था। जिसके चलते कोतवाली पुलिस ने प्रबल शर्मा को भी आरोपी बना लिया। बताते हैं कि प्रबल शर्मा झालावाड़ राजस्थान में आईएमओ के पद पर कार्यरत है, तथा नकली एसडीएम बनकर वो लोगों के साथ इसी तरह की ठगी करता है, लेकिन इस बार पकड़ में आ गया।
पुलिस ने लगाई आपत्ति, तो निरस्त हुई जमानत
आरोपी प्रबल शर्मा की तरफ से पैरवी एडवोकेट शैलेन्द्र समाधियां कर रहे थे, जबकि शासन की ओर से अपर लोक अभियोजक बी डी राठौर रहे। कोतवाली पुलिस ने न्यायालय में आपत्ति लगाते हुए कहा है कि आरोपी प्रबल को यदि जमानत मिली तो वो फरार हो सकता है, जबकि उससे अभी बहुत कुछ जानकारी लेना शेष है। साथ ही वो केस से जुड़े साक्ष्यों को भी प्रभावित कर सकता है। जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट ने जमानत आवेदन निरस्त कर दिया।
उप पंजीयक पर संदेह:
जब भी संभागायुक्त किसी विकृत से वर्जित भूमि को बेचने की परमीशन देते हैं, तो वो शासकीय रिकॉर्ड पर ऑनलाइन शो होने लगती है। इसमें बड़ा सवाल यही है कि जब उप पंजीयक ने रजिस्ट्री की तो, उन्होंने ऑनलाइन रिकॉर्ड क्यों नहीं देखा?, ऐसी क्या जल्दी थी?।






