
करेरा तहसील में हुआ जमीन का डिजिटल फ्रॉड, शिकायत कलेक्टर तक पहुंची, नपेंगे जिम्मेदार
जमीन की दो बार रजिस्ट्री व नामांतरण होने के बाद पटवारी और बाबू ने मिलकर ऑनलाइन नामांतरण हटाया
शिवपुरी। अभी तक तो अपने ऑनलाइन ठगी करके पैसों के मामले देखे और सुने होंगे, लेकिन शिवपुरी जिले की करेरा तहसील में जमीन का डिजिटल फ्रॉड कर दिया गया। जिसमें पटवारी और बाबू ने मिलकर पहले तो ऑनलाइन नामांतरण चढ़ा दिया, लेकिन जब जमीन के अगले सौदे में से पटवारी और रैकेट के सदस्यों को हिस्सा नहीं दिया, तो उन्होंने ऑनलाइन नामांतरण ही रिकॉर्ड से गायब कर दिया। इस मामले की शिकायत कलेक्टर रविंद्र कुमार चौधरी से की गई है, जिसकी जांच 7 दिन में करने के निर्देश कलेक्टर ने दिए हैं।
शिवपुरी जिले में जमीनोना का गड़बड़झाला बड़े पैमाने पर किया जा रहा है, और इसमें राजस्व के जिम्मेदार भी जमकर माल लूट रहे हैं। करेरा विधानसभा के ग्राम जारगांवा में हाइवे किनारे लगभग 4 बीघा जमीन मंगल यादव से वर्ष 3024-25 में क्रय की, जिसकी रजिस्ट्री और नामांतरण भी हो गया था। उक्त जमीन को श्वेता ने उमेश गुप्ता को वर्ष 2025-26 में उमेश गुप्ता को विक्रय कर दी। इस बार भी जमीन खरीदने के बाद रजिस्ट्री और उमेश गुप्ता के पक्ष में नामांतरण भी हो गया थ।
सूत्रों का कहना है कि उमेश गुप्ता ने जब हाइवे किनारे स्थित उक्त जमीन का सौदा तय किया, तो यह जानकारी पटवारी बृजेश और तहसील के बाबू लोकेंद्र को पता चली। कथित तौर पर उक्त लोगों ने उमेश गुप्ता से जमीन के सौदे में से अपना हिस्सा मांगा, और जब गुप्ता ने देने से मना कर दिया तो राजस्व विभाग के इन धुरंधरों ने ऑनलाइन रिकॉर्ड में दिखने वाला उमेश गुप्ता का नामांतरण गायब कर दिया। इतना ही नहीं उक्त जमीन रिकॉर्ड में फिर से श्वेता के नाम होना बताकर यह प्रचारित करवा दिया कि जमीन विक्रय से वर्जित थी, जिसे बेचा गया। ऑनलाइन नामांतरण में नाम हटने से परेशान हुए उमेश गुप्ता से एक आवेदन करेरा थाने में दिलवाया गया। करेरा टीआई भी आपराधिक मामले छोड़कर जमीन के इस केस को सुलझाने में सक्रिय हो गए। हालांकि बाद में जब उन्होंने दस्तावेज देखे, तो उनकी समझ में आया कि खेल तो कोई और कर गया।
जमीन के डिजिटल फ्रॉड की शिकायत सोमवार को जब कलेक्टर रविंद्र कुमार चौधरी के पास पहुंची, तो दस्तावेज देखकर उन्होंने मामले को गंभीर बताते हुए 7 दिन में जांच करने के निर्देश दिए हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि करेरा में सक्रिय रैकेट ने भी सोचा कि दीवाली मनाने की व्यवस्था हो गई, तो उन्होंने भी अपनी भूमिका निभाई। दस्तावेज सामने आते ही अब इस मामले में तहसील का राजस्व अमला उलझता नजर आ था है।
यह हैं बड़े सवाल:
– जब जमीन विक्रय से वर्जित थी, तो फिर दो बार एजिस्ट्री और नामांतरण कैसे हो गया?
– विक्रय से वर्जित जमीन की रजिस्ट्री और नामांतरण कैसे हो गया?, और इसे किसने किया?








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