
नपा के भ्रष्टाचार मामले में ठेकेदार अर्पित की जमानत हुई निरस्त, अब जाना पड़ेगा हाईकोर्ट
पीआर के दौरान पार्षदों को धमकी देना भी पड़ा महंगा, पुराने अपराधों की सूची भी बनी बाधक
शिवपुरी। शहर विकास की राशि को हड़पने तथा भ्रष्टाचार अधिनियम के मुख्य आरोपी ठेकेदार अर्पित शर्मा की जमानत याचिका मंगलवार को मजिस्ट्रेट विवेक शर्मा ने निरस्त कर दी। पीआर के दौरान पार्षदों को दी गई धमकी और पूर्व से दर्ज मामले, जमानत में बड़ी रुकावट बन गए। महत्वपूर्ण बात यह है कि अनुसंधान अधिकारी के सामने पार्षदों को धमकाया गया, लेकिन उन्होंने न्यायालय में ऐसी किसी भी बात से यह कहकर इंकार के दिया कि यह अब मेरे सामने नहीं हुआ।
गौरतलब है कि भ्रष्टाचार अधिनियम के आरोपी ठेकेदार की जब ग्वालियर हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत निरस्त हुई थी, तब उसने शिवपुरी न्यायालय में सरेंडर कर दिया था। उसके बाद पूसी ने दो दिन का रिमांड लेकर बीते 18 सितंबर को न्यायालय में पेश किया, तो फिर न्यायालय ने उसे जेआर (ज्यूडिशियल रिमांड) पर जेल भेज दिया था। उसके बाद मंगलवार को ठेकेदार अर्पित की जमानत का आवेदन जिला अभिभाषक संघ के अध्यक्ष एडवोकेट विजय तिवारी ने पेश किया, जबकि 18 पार्षदों की ओर से आपत्ति एडवोकेट अभय जैन एवं करन कटारिया ने लगाई थी।
आपत्ति में यह भी उल्लेख किया गया कि आरोपी के खिलाफ पहले से ही 6 अपराध दर्ज हैं, इसके अलावा अभी हाल ही में मोहना में पार्षद के भाई के साथ मारपीट एवं धमकी दी गई थी, जिसका मामला मोहना थाने में भी दर्ज है। इसके अलावा पीआर के दौरान आरोपी ठेकेदार अर्पित ने पुलिस अभिरक्षा में रहते हुए पार्षद ताराचंद राठौर एवं पार्षद पति वीरेंद्र को धमकी दी थी। जिसकी लिखित शिकायत कोतवाली में की गई है। उक्त सभी आपत्तियों पर गौर करते हुए न्यायाधीश विवेक शर्मा ने माना कि आरोपी को जमानत दी गई, तो भ्रष्टाचार अधिनियम की जांच एवं साढ़े 4 करोड़ के कामों की गुम हुई फाइलों को भी वो प्रभावित कर सकता है। जिसके चलते जमानत याचिका निरस्त कर दी गई।
पहले बनाया माहौल, फिर छाई मायूसी
ठेकेदार अर्पित शर्मा के जमानत आवेदन पर बहस होने के बाद मजिस्ट्रेट ने तत्काल अपना फैसला नहीं दिया था। इस दौरान ठेकेदार के समर्थकों ने यह अफवाह फैला दी कि जमानत मंजूर हो गई। इतना ही नहीं, कुछ अति शुभचिंतकों ने तो सोशल मीडिया पर भी जमानत होने के मेसेज डाल दिए। लेकिन जब शाम साढ़े 5 बजे आदेश की कॉपी नीचे आई, तो खुशी काफ़ूर हो गई। वो भी शांत हो गए, जो कहीं खुशी-कहीं गम मना रहे थे।