
टैंकर चोर ठेकेदार की अग्रिम जमानत हुई रिजेक्ट, क्या अब गिरफ्तारी का प्रयास करेगी पुलिस.?
आमजन होता तो परिजनों को थाने में बिठाकर आंगन खोद देती पुलिस, इसे दिया जमानत कराने का समय
आखिरकार शिवपुरी न्यायालय से टैंकर चोर वा डस्ट गिट्टी डकारने वाले ठेकेदार अर्पित शर्मा की अग्रिम जमानत याचिका गुरुवार को निरस्त हो गई। चूंकि इस मामले में आरोपी बने दो इंजीनियरों की गिरफ्तारी के बाद शिवपुरी से ही जमानत हो गई थी, इसलिए 10 हजार के फरार आरोपी ठेकेदार के वकील विजय तिवारी (अध्यक्ष, जिला अभिभाषक संघ) ने अग्रिम जमानत की याचिका लगाई थी। बड़ा सवाल यह है कि क्या अब पुलिस फरार इनामी आरोपी को गिरफ्तार करने का प्रयास करेगी..?, क्योंकि उसे जमानत कराने का पूरा मौका पुलिस ने दिया।
नगरपालिका शिवपुरी में शहर विकास के लिए आई करोड़ों की राशि को बिना काम किए हड़प कर पूरे शहर की जनता का दोषी ठेकेदार अर्पित शर्मा पिछले 22 दिन से फरार है, जबकि उसके साथ सह आरोपी रहे सहायक यंत्री सतीश निगम और उपयंत्री जितेंद्र परिहार को पुलिस ने उत्तराखंड से गिरफ्तार करने का दावा करके जब न्यायालय में पेश किया, तो उनकी जमानत हो गई। इस दौरान किसी ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं कराई थी, नपा के वकील भी नदारद रहे थे।
बताते है कि उसी दिन ठेकेदार के अग्रिम जमानत का आवेदन लगा दिया था, लेकिन पार्षदों। द्वारा आपत्ति लगाए जाने एवं अलग से वकील खड़ा करने से दो दिन तक लटकाई गई जमानत याचिका तीसरे दिन गुरुवार को निराट हो गई। चूंकि दोनों इंजीनियरों की जमानत लिए जाने के बाद आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में रिव्यू पिटिशन लगाने की तैयारी हो गई थी, तथा जिला एवं सत्र न्यायाधीश से शिकायत करने के अलावा मजिस्ट्रेट का एक्सटेंशन आदि भी ओपन हो गया था, इसलिए आज ठेकेदार की जमानत याचिका निरस्त कर दी गई।
पुलिस को दोहरा व्यवहार
कोई सामान्य व्यक्ति यदि फरार हो जाता है, और उस पर यदि इनाम घोषित हो जाए, तो फिर पुलिस उसे गिरफ्त में लेने के लिए उसके परिवारजनों पर दबाव बनाती है। लेकिन इस मामले में तो मोबाइल लोकेशन ट्रेस करके फरार ठेकेदार के नजदीक पहुंची पुलिस दो इंजीनियरों को लेकर आ गई। यह हालात तब हैं, जबकि आरोपी के परिजन शासकीय सेवा में कार्यरत हैं। अग्रिम जमानत का पूरा समय देने के बाद भी क्या पुलिस अब हाईकोर्ट में लगने वाली जमानत याचिका का इंतजार करेगी..?, या फिर फरार आरोपी को गिरफ्तार करेगी। क्योंकि आरोपी पर 7 मामले दर्ज हैं, फिर भी पुलिस का इतना कार्पोरेशन समझ से परे है।
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