
पुलिस ने जिन यात्री बसों को लॉक कराया, उन्हें आरटीओ ने कर दी ट्रांसफर
घोटालेबाज पाराशर ने खरीदी थीं थोकबंद यात्री बसें, पुलिस ने कराईं थीं 57 बसें लॉक
शिवपुरी। शिवपुरी जिले में हुए 100 करोड़ के सहकारी बैंक घोटाले ने जिले के हजारों परिवारों का भविष्य बिगाड़ दिया, लेकिन परिवहन विभाग उसमें भी अपनी अवैध कमाई करने से बाज नहीं आ रहा। बैंक में घोटाला करने वाले राकेश पाराशर ने एक-दो नहीं बल्कि लगभग 65 यात्री बसें खरीद ली थीं। इनमें से लगभग 8- 10 बसें ट्रांसफर हो पाईं थीं, तथा शेष प्रक्रिया में थीं, तभी यह घोटाला उजागर हो गया था। इसके बाद कोलारस पुलिस ने पाराशर द्वारा खरीदी गईं 57 यात्री बसों की लिस्ट देकर उन्हें लॉक करने के लिए पत्र एवं सूची भेजी थी। जिला परिवहन अधिकारी ने पुलिस के पत्र को दरकिनार करते हुए सांठगांठ करके लॉक बसें दूसरे लोगों को ट्रांसफर कर दिया।
मध्यप्रदेश के परिवहन विभाग में अवैध कमाई किस हद तक की जाती है, उसकी नजीर पिछले दिनों भोपाल के जंगल में।52 किलो सोना तथा 11 करोड़ रुपए नगद मिलने से खुलासा हुआ था। इस विभाग में दलाली और लेनदेन की ऐसी परंपरा चल निकली है, कि अब जिम्मेदार अपराध जैसे कदम उठाने से भी नहीं चूक रहे।
ज्ञात रहे कि बैंक में चपरासी की जगह केशियर बनकर करोड़ों का घोटाला करने वाले पाराशर ने अपनी दो नंबर की कमाई को यात्री बसों में खर्च करते हुए थोकबंद यात्री बसें खरीद लीं थीं। स्थिति यह थी कि शिवपुरी बस स्टैंड पर खड़ी होने वाली सभी बसें पाराशर फर्म की ही नजर आ रहीं थीं। घोटाला उजागर होने के बाद पाराशर फर्म की यात्री बसों को भी पुलिस ने कार्रवाई की जद में लेकर यात्री बसों की पूरी लिस्ट परिवहन विभाग को दी थी, कि उक्त नंबर की यात्री बसों को किसी दूसरे के नाम ट्रांसफर न किया जाए।
लिया माल, यात्री बस कराईं ट्रांसफर
परिवहन विभाग में दलाली इस कदर हावी रही कि पुलिस द्वारा लॉक कराई गईं यात्री बसों को दूसरे के नाम ट्रांसफर कर दिया। हमारे पास एक लॉक बस के ट्रांसफर का दस्तावेजी प्रमाण सामने आया है। 57 यात्री बसों की सूची में 53वें नंबर पर दर्ज यात्री बस क्रमांक एमपी06- पी 0678 को प्रवीण पुत्र पूरनचंद शिवहरे के नाम ट्रांसफर कर दिया गया। सूत्रों का कहना है परिवहन विभाग ने मोटी रकम लेकर लॉक कराई गई यात्री बसों को इसी तरह ट्रांसफर कर दिया।
हितग्राहियों को कैसे मिलेगा अपना पैसा..??
सहकारी बैंक में जिले के हजारों परिवारों का पैसा फंसा हुआ है। यह परिवार ना तो अपने बच्चों की शादी कर पा रहे हैं और न ही परिवार के सदस्यों की गंभीर बीमारी का इलाज करवा पा रहे हैं। यात्री बसों को यदि नीलाम कर दिया जाता, तो बैंक घोटाले की कुछ तो रिकवरी होती, जिससे कई परिवारों को राशि वापस की जा सकती थी। परिवहन विभाग में चल रहे भ्रष्टाचार के चलते बैंक के हितग्राहियों की यह उम्मीद भी टूटती नजर आ रही है। यदि इसकी जांच हो, तो परिवहन विभाग का यह बड़ा भ्रष्टाचार उजागर होगा।


