November 15, 2025
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संगठन में सिंधिया लॉबी को तवज्जो नहीं, ओबीसी नेता के नाम की चर्चा भी सरगर्म
शिवपुरी में भाजपा जिलाध्यक्ष को लेकर असमंजस बरकरार है। पिछले दिनों सिंधिया भाजपा से पूर्व विधायक का नाम तेजी से चला, तो उनके समर्थक एकाएक हवा में आ गए। जबकि संगठन उस नाम पर तैयार नहीं है। पूर्व में चल रहे नामों के साथ ही ओबीसी से हेमंत ओझा के नाम की चर्चा भी चल निकली है। संगठन में अच्छी पकड़ रखने वाले हेमंत को अभी तक के तीन जिलाध्यक्षों के साथ काम करने का अवसर भी मिला है। ऐसे में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के सामने जिलाध्यक्ष की घोषणा किसी बड़े चैलेंज से कम नहीं है।
शिवपुरी में भाजपा जिलाध्यक्ष की दौड़ में सोनू बिरथरे, गगन खटीक के अलावा निवर्तमान जिलाध्यक्ष राजू बाथम के नामों की चर्चा के बीच हेमंत ओझा का नाम भी तेजी से आगे आया है। सांसद प्रतिनिधि रह चुके हेमंत अभी तक संगठन में न केवल काम कर चुके हैं, बल्कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की व्यवस्थाओं में आगे बढ़कर सहयोग करते रहे हैं।
भाजपा में इतने युवा चेहरों के बीच सिंधिया खेमे के जसवंत जाटव के रिकॉर्ड मतों से उपचुनाव हारने के बाद भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर संगठन पहले ही सिंधिया गुट के नेताजी को ऑब्लाइज कर चुका है। अब क्या एक ही नेता को बार-बार पुरस्कृत किया जायेगा?। बस इसी सवाल ने रेतीले विधायक के नाम से चर्चित रहे नेताजी का नाम जितनी तेजी से आगे आया, उसी गति से रिवर्स गियर में नाम वापस चला गया। सवाल यह भी है कि महज एक साल कांग्रेस के विधायक रहे नेताजी को सिंधिया के साथ पार्टी छोड़ने के बदले करोड़ों रुपए देने के बाद उपचुनाव में प्रागीलाल ने करारी शिकस्त दी थी। चुनाव हराने के बाद भी सिंधिया के रहमोकरम पर एक बार कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दे दिया। अब पार्टी की ऐसी कोई मजबूरी नहीं है कि इतने बरसों पुराने भाजपा के लिए काम कर रहे युवा नेताओं को छोड़कर एक ऐसे नेता को जिलाध्यक्ष बनाए, जिसे करेरा की जनता पहले ही नकार चुकी है।
उधर राजू बाथम का दोहरा कार्यकाल होने के बाद भी उनके साथ कोई विवाद नहीं जुड़ा, इसलिए उनके नाम पर भी विचार किया जा रहा है। अब देखते हैं कि संगठन किसके नाम की पर्ची खोलता है…?
कांग्रेस की तरह भाजपा में भी हुए गुट
पहले कांग्रेस में कई गुट थे, और अब वो ही स्थिति भाजपा में हो गई है। एक तो भाजपा के संगठन का गुट है, जिसमें भाजपा के बरसों पुराने भाजपा नेता और कार्यकर्ता शामिल हैं। दूसरा सिंधिया भाजपा गुट, जिसमें शामिल नेताओं ने सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर भाजपा में भीड़ बढ़ा दी। अब देखना यह है कि संगठन आयातित नेताओं की खुशी के लिए अपने बरसों पुराने नेताओं को निराश करेगी, या फिर अपने ही नेताओं में ऊर्जा भरेगी..!

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