
“प्राण धर्म: मानव अस्तित्व की अनिवार्यता: आनंद मार्ग का वैश्विक संदेश”
शिवपुरी। आनंद मार्ग प्रचारक संघ शिवपुरी द्वारा आयोजित आनंद मार्ग सेमिनार स्थानीय राधिका पैलेस गार्डन ग्वालियर बायपास में आयोजित हो रहा है। इस सेमिनार का शुक्रवार की सुबह उद्घाटन समारोह द्वारा शिविर का प्रारंभ किया गया। इस अवसर पर आनंद मार्ग के केंद्र से पधारे आचार्य पुष्पेंद्रानंदा अवधूत द्वारा आनंद मार्ग के संस्थापक भगवान श्री आनंदमूर्ति की प्रतिकृति पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर सेमिनार का प्रारंभ किया गया।
सेमिनार के प्रारंभ में उन्होंने बताया कि यह सेमिनार तीन दिन चलेगा, जिसमें भारतीय अध्यात्मिक दर्शन, समाजशास्त्र, धर्मशास्त्र आदि दार्शनिक विषयों पर क्लासेस के माध्यम से भक्तगणों के बीच रखे जाएंगे। कक्षाओं का समय सुबह 10 से 12, दोपहर 3 से 5 एवं रात्रि 8 से 9 रखा गया है। आचार्य पुष्पेंद्रानंद अवधूत ने “प्राण धर्म” विषय पर संबोधित करते हुए कहा कि, जिसमें मानव जीवन के सार, उसकी गरिमा और उसके सार्वभौमिक उद्देश्य पर गहन प्रकाश डाला गया है वही मनुष्य का प्राण धर्म है । किसी भी व्यक्ति, समाज या राष्ट्र की आत्मा उसके “प्राण धर्म” में निहित होती है — वह आंतरिक अनुशासन,जीवन-दृष्टिकोण और मूल्य जो मानव को पशुत्व से उठाकर दिव्यता की ओर ले जाते हैं।आनंद मार्ग के अनुसार, भारत की सभ्यता सदियों से एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण पर आधारित रही है, जहाँ जीवन का प्रत्येक पहलू साधना का ही अंग माना गया। भारत का प्राचीन शिक्षातंत्र, सामाजिक व्यवस्था और सांस्कृतिक मूल्य उसी आध्यात्मिक जीवनदृष्टि से पोषित हुए जिसे “प्राण धर्म” कहा जा सकता है।आचार्य जी ने कहा कि किस प्रकार विदेशी शासन — चाहे वह मुग़ल हो, ब्रिटिश हो या पूंजीवादी शक्तियाँ — भारत के प्राण धर्म को कमजोर करने का प्रयास करते रहे। ब्रिटिशों ने शिक्षा के माध्यम से एक ऐसा वर्ग खड़ा किया जो भारतीय होकर भी भारतीय न रहा। साम्यवाद ने भी, भौतिकवाद के नाम पर, मानव जीवन के आध्यात्मिक मूल्यों को नष्ट करने की कोशिश की। किंतु आनंद मार्ग इस विघटनकारी प्रक्रिया के विरुद्ध हमेशा संघर्ष करते हुए खड़ा है। आनंद मार्ग का सामाजिक-आर्थिक दर्शन, उसकी शिक्षा-नीति और आध्यात्मिक साधना प्रणाली, सभी इस बात के लिए समर्पित हैं कि प्रत्येक मानव अपने प्राण धर्म का पुनः अन्वेषण कर सके और उसे पूर्ण रूप से जी सके।
आनंद मार्ग जीवन को माया नहीं मानता, बल्कि उसे एक सापेक्ष सत्य मानकर, उसकी समस्याओं के समाधान के लिए सक्रिय भागीदारी करता है।आज, जब दुनिया भौतिकता और मानसिक तनाव से ग्रसित है, आनंद मार्ग का यह संदेश समय की माँग बन गया है —”मानव को उसकी आत्मचेतना से जोड़कर, उसकी आध्यात्मिक भूख को तृप्त करना ही सच्ची शिक्षा और सच्चा धर्म है।”आनंद मार्ग विश्व के सभी देशों को उनके विशिष्ट राष्ट्रीय प्राण धर्म को सुरक्षित रखते हुए, एक सार्वभौमिक मानव धर्म की स्थापना के लिए प्रयास रत है जिससे एक ऐसे मानव समाज का निर्माण हो सके जिसमें प्राणी जगत, उद्भित जगत एवं मानव जगत का सार्वभौमिक कल्याण हो सके।
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